श्रीयंत्र बहुत ही प्राचीन और एक महत्वपूर्ण सिंबल है। जिस कि हिन्दू धर्म में पूजा और उपासना की जाती है। इस के और भी नामों से जाना जाता है, वे नाम हैं श्रीचक्र या श्रीकामधेनु। यह यंत्र हमें सिखाती है समृद्धि, और दिव्यता की स्त्री देवता श्रीलक्ष्मी को संबोधित है और उसकी पूजा, आराधना पर केंद्रित है।
श्रीयंत्र की मुख्य विशेषताएँ
1. श्रीयंत्र एक विशेष चक्राकार रेखांकित यंत्र है जिसमें कई त्रिभुज और षट्कोण के आयाम होते हैं।
2. श्री यंत्र के चार त्रिकोण स्थान हैं, जो कि भगवान विष्णु, रुद्र, ब्रह्मा और ईश्वर की उपस्थिति का प्रतीक होते हैं।
3. श्री यंत्र के बीचों बीच केंद्र में श्रीचक्र में देवी श्रीलक्ष्मी की होती है, जो धन, सम्पदा, समृद्धि, और सौभाग्य की देवी हैं।
4. श्री यंत्र की पूजा के दौरान मन्त्रों और चित्रों का महत्व विशेष है। मंत्र जाप और चित्र के साथ ही यंत्र की पूजा का संबंध उपयोग होता है।
5. श्री यंत्र की पूजा, उपासना का सीधा उद्देश्य दिव्य शक्तियों के साथ संयोजन का अभ्यास करना होता है।
6. श्री यंत्र सिध्दि के समय महामन्त्र और योगिक अभ्यासों के साथ जोड़ाकर किया जाता है, जिससे समृद्धि होती है।
7. श्री यंत्र की पूजा के पश्चात प्रसाद के तौर पर गुड़, घी, मिष्टान्न, और फल भक्तों को बाँटा जाता है।
श्रीयंत्र की पूजा, उपासना किसी भी व्यक्ति को आत्म-समर्पण, परम भक्ति, और आत्मा की उन्नति की दिशा में बढ़ने का एक मार्ग है।