कबीर के भजन संग्रह: कबीर एक बहुत ही प्रसिद्ध भारतीय संत थे, जिन्हें एक प्रसिद्ध कवि, और सामाजिक सुधारक के रूप में भी जाना जाता है। इनका पूरा जीवन 15 वीं और 16 वीं सदी में बीता। इनका जन्म संगीतगांव, तहसील कौशाम्बी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। कबीर का ध्यान भक्ति, धार्मिक संदेश, सामाजिक सुधार, और वैचारिक विकास के विषयों पर ही अधिक लगता था। कबीर के हर गीत और उनके दोहे अपनी सरलता और गहराई के लिए लोगों में बहुत प्रसिद्ध हैं। उनके द्वारा लिखे हुए गाने और दोहे आज भी लोगों के दिलों दिमाग में बसे हुए हैं और उनको लोग अपने जीवन के मार्गदर्शक के रूप में मानते है। उनकी कविताओं में जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा होती है, इनके साथ साथ भक्ति, प्रेम, और आत्मबोध के संदेश भी होते हैं। कबीर का एक बड़ा योगदान भारतीय संस्कृति में अमूल्य है, और उनकी रचनाएँ आज भी हमें हमारे सामाजिक में दिखती है। साथ ही धार्मिक, और मानवता के महत्वपूर्ण विचारों की ओर हमें प्रेरित करती हैं।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े,
काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने,
गोविन्द दियो बताय।।
गुरू और गोबिंद अर्थात् भगवान अगर एक साथ खड़े होंगे तो सबसे पहले किसे प्रणाम करना चाहिए गुरू को या फिर गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के चरण में शीश झुकाना उचित होता क्योंकि उनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का भी दर्शन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ।
गुरू बिन ज्ञान न उपजै,
गुरू बिन मिलै न मोष।
गुरू बिन लखै न सत्य को,
गुरू बिन मिटै न दोष।।
इस पंक्ति में कबीर कहते हैं, हे सांसरिक प्राणियों बिना किसी गुरू के आपको ज्ञान का मिलना लगभग असम्भव लगता है। बिना किसी गुरू के मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता रहता है। वह इस मायारूपी सांसारिक बन्धनों मे जकड़ा हुआ होता है। मनुष्य को मोक्ष रूपी मार्ग को दिखलाने वाले सिर्फ और सिर्फ एक गुरू ही हैं। इसलिए बिना किसी गुरू के सत्य व असत्य का ज्ञान किसी को भी नहीं हो सकता। अगर मनुष्य को उचित और अनुचित का भेद नहीं होगा तो फिर वह मनुष्य मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकेगा? इसलिए मनुष्य गुरू की शरण में जाओ। क्योंकी तुम्हारे गुरू ही तुम्हे सच्ची राह दिखाएंगे।
गुरू पारस को अन्तरो,
जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे,
ये करि लेय महंत।।
एक गुरू और पारस के बीच का अन्तर तो सभी ज्ञानी पुरूष जानते ही हैं। क्योंकि पारस मणि के विषय में तो जग विख्यात हैं कि उसके कैसे उस स्पर्श से लोहा को भी सोने में बदल दिया था लेकिन गुरू भी इतने ही महान होते हैं। वे अपने गुण और अपने ज्ञान से अपने शिष्य को ढाल लेते हैं। अपने शिष्य को भी बिल्कुल अपने जैसा ही महान बनाने की क्षमता रखते हैं।
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