श्री बटुक भैरव स्तोत्रम् हिन्दी में|Batuk Bhairav Stotram in Hindi|विघ्‍न बाधाएं दूर करने वाला बटुक भैरव मंत्र

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श्री बटुक भैरव स्तोत्र: कौन हैं बटुक भैरव? यह सवाल कुछ लोगों के में मन आते होंगे, जो इस नाम के बारे में नहीं जानते। दोस्तों मनुष्य के अंदर आने वाले भय, शत्रु, और नकारात्मक ऊर्जा जैसी चीजों को भागने के लिए एक शानदार इलाज है। जी हां ऐसा बिल्कुल संभव है। क्योंकि ये सारे तत्र-मंत्र के देवता हैं। ये भगवान शिव के बाल रूप है। ये आपकी सारी इच्छाओं की पूर्ति बड़ी ही आसानी से कर सकते हैं। इसके मंत्रों के जाप से आपको मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

बटुक भैरव स्तोत्र के लाभ

1. बटुक भैरव स्तोत्र के नियमित पाठ करने से शत्रु – बाधा, और अकाल मृत्यु से आपको सुरक्षा मिलती है।

2. बटुक भैरव स्तोत्र के नियमित पाठ से आपको भय और नकारात्मक प्रभाव से छुटकारा आसानी से मिलता है। जिससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता है और साहस आता है।

3. बटुक भैरव स्तोत्र के पाठ से जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता प्राप्त होती है। इसके साथ ही आपके अनेक रोग दूर होते हैं।

4. अगर किसी के कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव है तो बटुक भैरव स्तोत्र की नियमित पाठ से इनमें आपको शांति देखने को मिलती है। हर प्रकार की तंत्र-मंत्र और टोना-टोटके से आपका हर तरफ से बचाव होता है।

5. अगर आपके जीवन में नकारात्मक विचार आते हैं, हर समय चिंता होती रहती है तो आपके लिए बटुक भैरव स्तोत्र सबसे अच्छा उपाय है, जिसके पाठ से आपको लाभ मिलता है, जीवन में आपको सुख, समृद्धि, और अपार सफलता की प्राप्ति होती है। मन में शांति आती है, एकाग्रता बढ़ता है। 

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कब और कैसे करें बटुक भैरव स्तोत्र का जप

बटुक भैरव स्तोत्र के जाप के लिए विशेष दिन और समय होते हैं। इसी विशेष दिन में इसके जाप के लाभ आपको मिलते हैं। बटुक भैरव स्तोत्र का जाप मुख्यत दो दिन है मंगलवार और शनिवार का। अगर किसी कारण आपसे यह दिन छूट गई हो तो कोई भी अमावस्या के दिन भी आप यह काम कर सकते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त का समय बटुक भैरव स्तोत्र के जाप के लिए अनुकूल रहेगा। आप किसी ऐसे ही समय का चुनाव कर लें। स्नान करें, स्वच्छ वस्त्र पहने, ध्यानपूर्वक शांत स्थान पर बैठें और स्तोत्र का जप करें। 

।।बटुक भैरव क्षमा प्रार्थना मंत्र।।

आवाहनङ न जानामि, 

न जानामि विसर्जनम्। 

पूजा – कर्म न जानामि, 

क्षमस्व परमेश्वर।। 

मन्त्र – हीनं क्रिया-हीनं, 

भक्ति – हीनं सुरेश्वर।

मया यत् – पूजितं देव,

परिपूर्णं तदस्तु मे।।

श्री बटुक भैरव ध्यान मंत्र

वन्दे बालं स्फटिक – सदृशम्,

       कुन्तलोल्लासि – वक्त्रम्।

दिव्याकल्पैर्नव – मणि – मयैः, 

        किंकिणी – नूपुराढ्यैः।।

दीप्ताकारं विशद – वदनं, 

      सुप्रसन्नं त्रि – नेत्रम्।

हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं,

        शूल – दण्डौ दधानम्।।

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श्री बटुक भैरव मूल स्तोत्र

ॐ भैरवो भूत – नाथश्च,

भूतात्मा भूत – भावनः। 

क्षेत्रज्ञः क्षेत्र – पालश्च, 

क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।

श्मशान – वासी मांसाशी, 

खर्पराशी स्मरान्त – कृत्। 

रक्तपः पानपः सिद्धः,

सिद्धिदः सिद्धि – सेवितः।।

कंकालः कालः-शमनः,

कला – काष्ठा – तनुः कविः। 

त्रि – नेत्रो बहु – नेत्रश्च, 

तथा पिंगल – लोचनः।।

शूल – पाणिः खड्ग – पाणिः, 

कंकाली धूम्र – लोचनः।

अभीरुर्भैरवी – नाथो, 

भूतपो योगिनी – पतिः।।

धनदोऽधन – हारी च,

धन – वान् प्रतिभागवान्। 

नागहारो नागकेशो,

व्योमकेशः कपाल – भृत्।।

कालः कपालमाली च, 

कमनीयः कलानिधिः। 

त्रि – नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि – शिखी,

च त्रि – लोक – भृत्।।

त्रिवृत्त – तनयो डिम्भः 

शान्तः शान्त – जन – प्रिय।

बटुको बटु – वेषश्च,

 खट्वांग – वर – धारकः।।

भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः 

परिचारकः। 

धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः 

पाण्डु-लोचनः।।

प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः

शंकर – प्रिय – बान्धवः। 

अष्ट – मूर्तिर्निधीशश्च, 

ज्ञान – चक्षुस्तपो – मयः।।

अष्टाधारः षडाधारः,

सर्प – युक्तः शिखी – सखः। 

भूधरो भूधराधीशो,

भूपतिर्भूधरात्मजः ।।

कपाल – धारी मुण्डी च, 

नाग – यज्ञोपवीत – वान्।

जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, 

मारणः क्षोभणस्तथा ।।

शुद्द – नीलाञ्जन – प्रख्य – देहः

मुण्ड – विभूषणः। 

बलि – भुग्बलि – भुङ् – नाथो,

बालोबाल – पराक्रम ।।

सर्वापत् – तारणो दुर्गो, 

दुष्ट – भूत – निषेवितः। 

कामीकला – निधिःकान्तः, 

कामिनी – वश – कृद्वशी ।।

जगद् – रक्षा – करोऽनन्तो, 

माया – मन्त्रौषधी – मयः। 

सर्व – सिद्धि – प्रदो वैद्यः, 

प्रभ – विष्णुरितीव हि ।।

।। बटुक भैरव फल-श्रुति।।

अष्टोत्तर – शतं नाम्नां, 

भैरवस्य महात्मनः। 

मया ते कथितं देवि, 

रहस्य सर्व – कामदम्।।

य इदं पठते स्तोत्रं, 

नामाष्ट – शतमुत्तमम्। 

न तस्य दुरितं किञ्चिन्न 

च भूत – भयं तथा।।

न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, 

प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्। 

पातकेभ्यो भयं नैव, 

पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः।।

मारी – भये राज – भये, 

तथा चौराग्निजे भये।

औत्पातिके भये चैव, 

तथा दुःस्वप्नजे भये।।

बन्धने च महाघोरे, 

पठेत् स्तोत्रमनन्य – धीः। 

सर्वं प्रशममायाति, 

भयं भैरव – कीर्तनात्।।

Author: Allinesureya

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